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काग़ज़ ( KAAGAZ ) – pankaj tripathi की इस फ़िल्म को आपने अब तक देख ही लिया होगा। अगर फ़िल्म नहीं देखी है तो ट्रेलर तो ज़रूर देखा होगा। zee5 पर यह फ़िल्म 07 जनवरी को प्रीमियर हुई है। KAAGAZ की शूटिंग तो covid19 के पहले ही हो गई थी लेकिन coronavirus के कारण पोस्ट प्रोडक्शन का काम कुछ देरी से हुआ। बहरहाल अब ये फ़िल्म दर्शकों के लिए उपलब्ध है। आज बात करेंगे kaagaz की।
KAAGAZ PANKAJ TRIPATHI
पंकज त्रिपाठी ( Pankaj Tripathi ) और मोनल गज्जर (Monal Gajjar ) की मुख्य भूमिका वाली KAAGAZ एक बायोग्राफिकल फ़िल्म है जो एक व्यक्ति के जीवन में घटित हास्यास्पद लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम पर आधारित है। ये सिस्टम की कमियों पर उच्च कोटि की व्यंग्यात्मक शैली में लिखी गई फ़िल्म है ।
एक लिपिक या लेखापाल की लापरवाही या लालच की कीमत किसी भले नागरिक को कैसे चुकानी पड़ती है । एन रघुरामन सर अपने कॉलम में उन लोगों की व्यथा लिख चुके हैं, जिन्हें ‘काग़ज़’ पर नाम नही होने, या नाम सही न होने की कीमत चुकानी पड़ रही है ।
KAAGAZ BOOLYWOOD MOVIE
KAAGAZ लाल बिहारी के जीवन पर आधारित है जिन्हे पारिवारिक साज़िश के तहत “काग़ज़” पर मृत घोषित करवा दिया गया। इस साज़िश को लेखापाल की मदद से पूरा किया गया। कुछ भ्रष्ट लोग सिस्टम में मौजूद कमियां और कानून और व्यवस्था का लाभ लेकर आम व्यक्ति का शोषण किस तरह करते हैं, इसे बख़ूबी दिखाया गया है। लाल बिहारी को 1975 से 1994 के बीच आधिकारिक रूप से ( officially on paper ) मृत घोषित कर दिया गया। लाल बिहारी मृतक 19 साल तक तंत्र की इस ख़ामी के ख़िलाफ़ लड़ते रहे और अंततः जीते भी ।
उत्तर प्रदेश के रहने वाले लाल बिहारी मृतक ने मृतक लोगों का संघ भी बनाया और 1989 में राजीव गाँधी के ख़िलाफ़ चुनाव में भी खड़े हुए ताकि वो ख़ुद को जीवित साबित कर सकें। उन्होने अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन की मांग की। अन्याय का स्वरुप देखिए इस समय भी मृतक संघ में लगभग 20 हज़ार लोग हैं और सालों की कानूनी लड़ाई के बाद 2-4 लोगों को न्याय मिल पाता है।
KAAGAZ SATISH KAUSHIK
Satish Kaushik द्वारा लिखी गई और निर्देशित KAAGAZ में चुटीले संवाद और दृश्य रचे गए हैं। फ़िल्म हल्के-फ़ुल्के मनोरंजक ढंग से आगे बढ़ती है लेकिन जीते जी मर जाने (मृतक घोषित होने की ) की वेदना को भी प्रकट करती है। एक दृश्य में नायक घर पर पुलिस का इंतज़ार कर रहा है। गाड़ी आती देख प्रसन्न पत्नी कहती है मै ( पुलिसवालों के लिए ) कुछ खाने को लाती हूँ और नायक कहता है “हे भगवान बस इसी तरह कृपा बनाए रखना। आज बस अरेस्ट करवा दे”
KAAGAZ में Satish Kaushik ने वकील का किरदार निभाया है जो नायक भरत लाल की हर संभव मदद करता है ( हाँ वो अपनी वक़ालत की फ़ीस ज़रूर लेता है ). सतीश ने इस किरदार को स्वाभाविक और मज़ेदार रखा है लेकिन उसमें भीतर संवेदनशीलता भी है। जैसा नाचीज़ ने लिखा कि ये उच्च कोटि की व्यंग्यात्मक शैली में लिखी गई फ़िल्म है। व्यंग्य की यही विशेषता होती है। वो पढ़ने में तो हास्य है पर उसके मूल में करुणा होती है।
KAAGAZ MITA VASHISHT
Pankaj Tripathi इस फ़िल्म में भी नैय्या खेवैय्या हैं। वो अकेले अपने दमदार अभिनय से आपको घंटों बांधे रख सकते हैं। Monal Gajjar ( रुक्मणि ) और Mita Vashisht ( विधायक अशर्फ़ी देवी ) ने अपने पात्रों के साथ न्याय किया है।

POETRY OF KAAGAZ ( in salman khan’s voice in movie )
राहुल जैन की KAAGAZ के लिए लिखी ये अद्भुत पंक्तियाँ देखिए
कुछ नहीं है मगर है सब कुछ भी
क्या अजब चीज़ है ये काग़ज़ भी
बारिशों में है नाव काग़ज़ की
सर्दियों में अलाव कागज़ की
आसमाँ में पतंग काग़ज़ की
सारी दुनिया में जंग काग़ज़ की
कभी अख़बार कभी ख़त काग़ज़
रोज़मर्रह की ज़रुरत काग़ज़
आने जाने की सहूलत काग़ज़
जीने मरने की इजाज़त काग़ज़
बने नातों का भी गवाह काग़ज़
कहीं शादी कहीं निकाह काग़ज़
कहीं तलाक़ का गुनाह काग़ज़
बनाये और करे तबाह काग़ज़
छीन ले खेत घर ज़मीं काग़ज़
पोंछे आँखों की भी नमी काग़ज़
हर जगह यूँ है लाज़मी काग़ज़
जैसे घर का है आदमी काग़ज़
कुछ नहीं है मगर है सब कुछ भी क्या अजब चीज़ है ये KAAGAZ भी
IMROZ FARHAD
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IMROZ FARHAD NOOR is a co-founder and chief blogger of NEEROZ. He studied English Literature and Journalism. A number of articles, stories, short stories, poems have been published in reputed magazines and newspapers. He writes scripts for short movies, web series. He has been a radio announcer.He loves to read Psychology and Philosophy. He spends his spare time in drawing and playing basketball. He loves to travel. He speaks Hindi, English, and Urdu. ( learning Spanish ).