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लाइब्रेरियन
गरीबी कितनी बुरी तरीके से आपके साथ पेश आ सकती है इस बात का अंदाज़ा आप तब तक नहीं लगा सकते जब तक आपका उससे सामना ना हो। लेकिन इस गरीबी से जीवन के मोती वही निकाल पाते हैं, जो अपनी ज़िद पर अडिग होते हैं। जिन्हें अपने सपनों को पूरा करने में यकीन होता है। hindi story.
यह कहानी है ऐसे ही एक लड़के ‘आलोक’ की जो एक सामान्य परिवार से था। उसका परिवार इतना संपन्न तो नहीं था कि उसे राजसी ठाठ मिलते हो लेकिन क्योंकि आलोक इकलौता बेटा था, एक सामान्य परिवार का होते हुए भी उसे ऐसी कई सुविधाएं मिलती थीं जो सबको नसीब नहीं होती ।
उसके पिताजी कागज के कारखाने में नौकरी करते थे। उसका जीवन बहुत ही सरल सहज रूप से बीत रहा था। वह पढ़ाई में बहुत रुचि रखता था। पर उसे क्या पता था जब जिंदगी की मार पड़ेगी तो उसका सब कुछ उससे छिन जाएगा।
वह सिर्फ़ 10 साल का था कि एक दिन कारखाने से लौटते वक्त उसके पिताजी की सांप के काट लेने से मृत्यु हो गई। बुरा तो यह हुआ कि सांप काटने के कई घंटों बाद तक उनका कोई पता ना चला जिस कारण से उनको बचाया नहीं जा सका।
आलोक उसके पिताजी और उसकी माता परिवार में यह तीन ही थे। पिता के जाने के बाद, उसकी माता कुछ कर नहीं सकती थी क्योंकि उसे लकवे की शिकायत थी।
थोड़ा बहुत धन जो पिताजी इकट्ठा करके गए थे वह उनकी मृत्यु के कुछ समय पश्चात तक चला परंतु जब समय और बुरा होता गया तो उनके पास आजीविका का कोई और साधन ना बचा। आलोक इतना बड़ा ना था कि वह कहीं नौकरी कर सके।
उसकी जिंदगी में ऐसा समय आया कि उसकी पढ़ाई के साथ-साथ उसके परिवार की स्थिति और भी नाजुक होती गई। कबाड़ इकट्ठा करने और उसे बेचने से जो थोड़ा बहुत पैसा मिलता, उससे वह अपने और अपनी माता के लिए भोजन और थोड़ी बहुत दवाइयां की व्यवस्था करने लगा।
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यह सब करते हुए उसका जीवन बीत रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है समय उसके साथ इतना बुरा बर्ताव क्यों कर रहा है। धीरे-धीरे पढ़ाई भी छूट चुकी थी। वह सोचा करता था कि क्या ऐसे ही उसका सारा जीवन बीत जाएगा।
क्या ऐसे ही वह अपने और अपने परिवार की जिम्मेदारी निभाता रहेगा या किसी दिन जीवन में ऐसा कोई सूर्योदय होगा जो उसकी जीवन को एक नई दिशा दे जाएगा।
सड़क किनारे कबाड़ एकत्र करते हुए 1 दिन उससे एक किताब पड़ी मिली। उसने उस किताब को उठाया, अपने कपड़े से साफ किया, उसके पन्नों को सुधारा और वही सड़क किनारे बैठ उस किताब को पढ़ने लगा। वह इस कदर किताब पढ़ने में डूब गया कि उसे ये भी ख़बर ना रही की वह कहाँ बैठा है, कितनी गाड़ियों की आवाज़ आ रही है, कौन उसे देख रहा है।
वह बस उस किताब को पढ़ता गया, पढ़ता गया और देखते ही देखते शाम होने को आयी। जहां वह बैठ कर पढ़ रहा था उसी जगह से थोड़ा दूर ऊपर की मंजिल पर एक लाइब्रेरी थी । वहां के लाइब्रेरियन थे कबीर गोस्वामी जी। उस दिन अपनी मेज़ पर बैठे हुए उनकी नजर उस लड़के पर पड़ रही थी जो सड़क किनारे बैठे एक किताब पढ़ रहा था।
पर जैसे-जैसे समय बीतता गया और उस लड़के की लगन और पढ़ने के लिए उसका जुनून देखकर जब गोस्वामी जी से नहीं रहा गया तो वे पुस्तकालय से बाहर निकले और उस लड़के के पास चल दिए। जाते ही उन्होंने पूछा तुम ये क्या पढ़ रहे हो ?
उस लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया उन्होंने फिर पूछा यह क्या पढ़ रहे हो ? क्या नाम है तुम्हारा ? पर उस शोरगुल के बीच वहां बैठा लड़का जो किताब पढ़ रहा था, वो इस कदर पढ़ने में डूबा हुआ था कि वह गोस्वामी जी की बात पर ध्यान ही नहीं दे पाया।
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ध्यान देता भी कैसे? फटे-पुराने कपड़े पहने, सड़क किनारे बैठे एक गरीब लड़के से क्यों कोई बात करना चाहेगा ? क्यों कोई उस पर ध्यान देना चाहेगा ? लोग तो अपने जीवन में व्यस्त हैं, मस्त हैं।
व्यस्त तो गोस्वामी जी भी थे, परंतु उनकी व्यस्तता को तोड़ा था उस लड़के आलोक के जुनून, लगन ने, जो धूप में सड़क किनारे, भीड़भाड़ के बीच, शहर के शोरगुल के बीच पुस्तक पढ़ रहा था और जब गोस्वामी जी के बुलाने पर भी जब आलोक उनकी बात नहीं सुन पाया तब उन्होंने उसका हाथ पकड़ा और उसे लाइब्रेरी ले गए। आलोक उन्हें ये सब करते देख रहा था।
वो इस अजनबी से से पूछना चाहता था कि आप मुझे कहां ले जा रहे हैं। पर उसकी हिचकिचाहट ने उसे पूछने न दिया। जब लाइब्रेरी पहुंचे तो गोस्वामी जी ने उससे पूछा कि तुम सड़क किनारे बैठे क्या पढ़ रहे थे, क्या नाम है तुम्हारा? आलोक पहले तो सहमा से रहा फिर गोस्वामी जी के पूछने पर उसने अपने नाम बताया “आलोक ”
वो आगे कहने लगा “पढ़ने की बहुत इच्छा है लेकिन पिताजी के गुजर जाने के बाद घर के हालात बिगड़ने लगे। मुश्किलों से घर ख़र्च चल रहा है सर। मैं JUNK का काम करता हूँ, ये किताब मिल गई तो पढ़ने लगा।”
उसकी बात सुनकर लाइब्रेरियन महोदय का ह्रदय पसीज गया पर वह कर भी क्या सकते थे। गोस्वामी जी ने आलोक को लाइब्रेरी में काम करने के लिए रख लिया और खाली समय में उसे पढ़ने की इजाजत दे दी।
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पढ़ाई को लेकर आलोक की लगन नए उसकी जिंदगी मैं आए कठिन समय से उसे बाहर ले आया। उसका जीवन पहले से बेहतर होता गया। गोस्वामी जी आलोक के आदर्श बन गए।
जब वे सेवानिवृत्त हो कर लाइब्रेरी से विदा लेने वाले थे उस दिन आलोक को पता नहीं था कि यह दिन उसके लिए जीवन का यादगार दिन बन जाएगा। पुस्तकालय से उनकी विदाई के दिन उसका मन उदास था लेकिन उसी दिन एक घोषणा हुई।
आलोक को नया लाइब्रेरियन नियुक्त किया गया। आलोक को इस बात का पता चला तो उसकी आंखों से आंसू रोक नहीं पाए। उसे ‘लाइब्रेरियन’ नियुक्त किया। उसके आदर्श गोस्वामी जी ने, जिन्होंने उसे जीवन मे नयी राह दिखायी थी, उसे नए रास्ते पर लाए ।
आलोक ने गोस्वमी जी के पैर छुए। गोस्वामी जी ने आलोक को गले लगाया और कहा “अब ओर दिल लगाकर मेहनत करना” । उनका भी गला भर आया “और जितना मर्जी हो पढ़ते रहना, अब ये लाइब्रेरी तुम्हारी है।”
तो आपने देखा कि कैसे हमारी लगन और जुनून हमे वो सब देता है जो हम चाहते हैं, शर्त बस यह होती है कि हम उसे किस हद तक चाहते है। सिर्फ चाहते हैं या उसे पाना भी चाहते हैं। याद रखें हमे वो सब मिल सकता है जो हम चाहते है, बशर्ते हम उसके लिए तैयार हों ।
AVINASH PATEL
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IMROZ FARHAD NOOR is a co-founder and chief blogger of NEEROZ. He studied English Literature and Journalism. A number of articles, stories, short stories, poems have been published in reputed magazines and newspapers. He writes scripts for short movies, web series. He has been a radio announcer.He loves to read Psychology and Philosophy. He spends his spare time in drawing and playing basketball. He loves to travel. He speaks Hindi, English, and Urdu. ( learning Spanish ).