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साल 2020 के पहले मुझे बड़ी तादाद में ऐसे लोग मिलते थे जिन्हे पर्यावरण की बातें फ़ालतू की बातें लगती थीं। ENVIRONMENTAL POLLUTION उनके काम का मुद्दा न था । वो तो बड़ी से कंपनी में छोटे से ओहदे पर काम करते हुए भी यही सलाह देते थे कि पैसों की फ़िक्र करो।
हमारा ऑफिस 10 मिनट भी बंद रहा तो मालूम है कितना नुकसान हो जाएगा। आज जब उनसे पूछती हूँ कि तीन महीने से दुनिया का काम ठप्प पड़ा है, ज़रा नुकसान का हिसाब तो बनाओ, तो बहाना मार के खिसक लेते हैं। बहरहाल, जिनके समझ में नहीं आता है, उन्हें कभी नहीं आएगा।
5 जून को world environment day है। ये छोटी सी रचना प्रकृति प्रेमियों को समर्पित।
आज जब नींद खुली तो मैंने खुद को एक रेल की पटरी के किनारे पाया। शायद मैं किसी जंगल में था। दूर-दूर तक मेरी सुध लेने वाला कोई दिख नहीं रहा था। पर कुछ एहसास था किसी के आस-पास होने का| अचानक पटरियाँ थरथराने लगीं दूर से एक रेलगाड़ी आती दिखी। उम्मीदों ने दामन थाम लिया, अब शायद कोई मुझे देख लेगा और घर पहुँचा देगा।
पर यहाँ तो कुछ उल्टा ही हो गया। रेल के गुज़रते ही पटरी के दूसरी तरफ मुझे अपने ही कुछ साथी नज़र आए। क्या हमें यहाँ फेंकने का कोई मकसद था? इंसान बड़ा ही स्वार्थी है, काम निकलने के बाद हम उसके लिए ‘नाचीज़’ हो जाते हैं।
ENVIRONMENTAL POLLUTION
मेरा सफर भी किसी इंसान के बड़े कारखाने से शुरू हुआ था। किसी व्यापारी ने पैसे देकर ख़रीदा था मुझे, अपने नाम मात्र के आलू चिप्स और हवा भरने को, एक कीमत भी छापी थी मुझ पर। दुलारों से हाथों-हाथ झूलता हुआ मैं उस यात्री तक पहुंचा था ।
जिसने आलू चिप्स पेट में पहुँचते ही अपने हाथों से उस डिब्बे से मुझे बर्खास्तगी दे डाली। अब मैं उस जंगल में था जहाँ मुझे कोई उठाने नहीं आएगा, पर खुशकिस्मती से मेरी हालत पर हवा ने रहम फरमाया और एक जोरदार झोंके के साथ मैं उड़ चला अपनी हल्की औकात लिए शायद किसी गांव की तरफ।
आस ये लगी थी की कोई कूड़ाघर नसीब हो जाये पर मेरी फ्लाइट तो किसी आम के पेड़ पर लैंड हो गयी। आप कह सकते हैं कि रेल से फेंका, आम में अटका “
PARYAVARAN PRADUSHAN | पर्यावरण प्रदूषण |

मेरे सामने एक गल्ला दुकान है और पेड़ के नीचे दो बच्चे बैठे हैं, हो सकता है गुलेल से कैरियाँ तोड़ेंगे। मना रहा हूँ की एकाध पत्थर मझे भी गिराए और मैं जमीन तक आ जाऊँ, फिर कोई न कोई तो समेट के ले ही जाएगा मुझे। कुछ खुसर-फुसर कर बच्चे दुकान की तरफ दौड़ गए।
“भैया! मुझे कैरी वाली और इसको संतरे वाली टॉफ़ी ” कहते हुए उस बच्ची ने अपने सिक्के दुकानदार के हवाले कर दिए। अफ़सोस चमकीली पन्नी में लिपटा नकली स्वाद अब गांव के बच्चों की भी जुबां पर चढ़ गया। टॉफ़ी निगल कर दोनों बच्चे रंगीन रैपर्स सड़क के हवाले कर चल दिए ।
ENVIRONMENTAL POLLUTION | पर्यावरण प्रदूषण |
अब मुझे यकीन हो रहा है की अगली आंधी तक मैं शायद यहीं लटका रहूँगा अगर गिरा तो किसी चूल्हे में सुपुर्द ऐ ख़ाक हो जाऊँगा या किसी जानवर की देह को ख़ाक कर दूंगा।
किसी पौधे की जड़ों से लिपट कर उसकी बाढ़ रोक दूंगा या किसी नाली में फंसकर उसका प्रवाह रोक दूंगा। क्योंकि मुझे बनाने वाला अपने धंधे में अँधा है और उपयोग करने वाला बेफ़िकर….मेरे और अपने अंत से।
अगर आप में से किसी सज्जन को मैं सड़क पर मिलूं तो कृपा कर मुझे मेरे घर तक ज़रूर पहुंचाइयेगा।
“आपका फेंका हुआ पॉलिथिन”
SHILPI SHRIVASTAVA
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IMROZ FARHAD NOOR is a co-founder and chief blogger of NEEROZ. He studied English Literature and Journalism. A number of articles, stories, short stories, poems have been published in reputed magazines and newspapers. He writes scripts for short movies, web series. He has been a radio announcer.He loves to read Psychology and Philosophy. He spends his spare time in drawing and playing basketball. He loves to travel. He speaks Hindi, English, and Urdu. ( learning Spanish ).