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यूं तो साल 2020 के शुरुआत में ऐसी खबरें आने लगी थी कि कोई वायरस है जिससे होने वाली बीमारी की वजह से चाइना में लोग तेजी से मर रहे हैं। लोगों ने इस ख़बर को सुना और किसी देश में आई आपदा समझकर नियमित अपना काम-धाम करते रहे। देश में 2020 के आरंभ में ज़बरदस्त राजनीतिक उठापटक चल रही थी। जनवरी-फरवरी का समय दिल्ली के लिए बहुत संवेदनशील था। पूरे देश में CAA NRC को लेकर समर्थन और विरोध के दो गुट बन गए थे।
अनेक विश्वविद्यालयों में प्रदर्शन हो रहे थे। अनेक शहरों में प्रदर्शन थे। समर्थक भी अपनी ओर से बातें कर रहे थे, PRO CAA अवसर भी रहे । संसद में निरंतर बहस चल रही थी लेकिन बावजूद इस सबके साथ-साथ जिंदगी चल रही थी। मेरी आपकी ज़िंदगी, जो सालों से चल रही है और वैसे ही जिंदगी जो हम सब देखते आए है, जारी थी।
SARS . EPIDEMIC. PANDEMIC
हम सब ने अपने बड़ों से, दादी, नानी से, किताबों से महामारियों के बारे में सुना है,पढ़ा है । हम भाग्यशाली थे कि हम सब ने 2020 के पहले कभी किसी महामारी (epidemic) को नहीं देखा और वैश्विक महामारी ( PANDEMIC ) किसे कहते हैं, इसका तो हमें अनुमान ही नहीं था। हमने बचपन से बड़ी से बड़ी बीमारी के नाम पर प्लेग, हैजा, टीबी और एड्स जैसी बीमारियों के बारे में सुना था, जिन को लेकर सरकार,डॉक्टर, दवा कंपनियां और वैज्ञानिक हमेशा काम करते रहते थे और इन बीमारियों के मरीजों के अलावा भी जिंदगी रोजमर्रा में अपने ढंग से चलती रहती थी।
हमने कभी नहीं सुना था कि किसी बीमारी की वजह से दुनिया का कोई देश पूरी तरह बंद हो गया हो। पूरी दुनिया के बंद होने का तो सवाल ही नहीं उठता। व्यापार,पर्यटन,फिल्में,आना-जाना,मिलना -जुलना,समारोह,पार्टियां,जीवन -मृत्यु के कार्यक्रमों में चलते रहे और हमेशा ही चलते रहेंगे। मार्च 2020 में भी मुझे याद था कि 2003 -04 में चाइना में ही sars virus ( सीवियर एक्यूट रेस्पिरेट्री सिंड्रोम ) नाम से एक वायरस फैला हुआ था,
जिसके कारण लोग मास्क लगा कर निकलते थे। इसके करीब 8 हज़ार मामले सामने आए थे और लगभग 750 लोगों की मौत हो गई थी। यह लगभग 16 साल पुरानी बात है और उस समय चाइना में भी इस बीमारी से बहुत सीमित इलाका प्रभावित हुआ था।
INDIA’S FIRST COVID 19 CASE
वापस आते हैं साल 2020 में। दिसंबर 2019 में इस वायरस को पहचान लिया गया, इसलिए इसका नाम कोविड-19 रखा गया। CORONAVIRUS DISEASE 19 और क्योंकि यह इस श्रेणी का एक नया स्ट्रेन था इसमें NOVEL (नया ) शब्द जोड़ा गया। याद रहे कि पहला या पुराना कोरोना वायरस SARS को ही कहेंगे। बहरहाल जनवरी 2020 में अब तक मार्केट में चल रहे थे, स्कूल कॉलेज खुले हुए थे। शादियां हो रही थी,आयोजन हो रहे थे।
सब कुछ सामान्य तरीके से चल रहा था। 30 जन को मालूम हुआ कि भारत का पहला कोविड-19 केस केरल में पढ़ने वाले छात्र ( जो वुहान से आया था ) मिला है। तुरंत ही भारतीय छात्रों को चीन से इवेक्युएट करने की प्रक्रिया शुरू हो गई। इसके बाद फरवरी माह में अनेक देशों में हड़कंप मच गया। विशेष रुप से अमेरिका, फ्रांस, स्पेन ,जर्मनी में तेजी से केस बढ़ने लगे।
COVID19 AND HUMAN BEHAVIOUR
HUMAN PSYCHOLOGY है, इंसानी दिमाग़ की फ़ितरत है कि उसे लगता है कि उसके साथ कुछ बुरा नहीं होगा।बाकी जगह जरूर बुरा हो रहा है,उसे लेकर वह दुख प्रकट करता है उसे लगता है कि उसके साथ कुछ बुरा नहीं होगा। उसके समाज ,उसके देश के साथ कुछ बुरा नहीं होगा जो कि एक बहुत अच्छा विचार भी है कि हम सब अपना भला चाहते हैं और किसी दूसरे का बुरा नहीं चाहते। एक देश के रूप में तो हम कभी भी किसी देश के नागरिकों को बुरा नहीं चाहते।
लेकिन मार्च के महीने तक भारत में बहुत तेजी से पेशेंट की संख्या बढ़ चुकी थी। यह सारे राज्यों में फैलता जा रहा था। इसी बीच अलग-अलग सावधानियां बरतने (precaution ) की बात सामने आने लगी। मास्क लगा के रखना,अपने हाथों को बार-बार धोना। लोगों से दूरी बनाए रखना आवश्यक हो गया।
उस समय मैं भी अपने मित्रों के साथ बैठकर चर्चा कर रहा (फरवरी प्रथम सप्ताह में )था। सवाल पूछा जा रहा था कि कोरोनावायरस (coronavirus) का दूसरा नाम क्या है ? तब तक भी हमें अनुमान नहीं था कि आगे क्या होने वाला है और दुनिया किस तरह से बदल रही है और पूरी तरह बदल जाएगी। इसका 1 साल पूरा होने पर भी, याद करते हुए भी रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं और आपकी आंखें नम हो जाएंगी।
JANTA CURFEW. LOCKDOWN
फिर मार्च के तीसरे सप्ताह में पता चलता है कि पूरे भारत में 1 दिन का कर्फ्यू (JANTA CURFEW) लगाया जा रहा है जिसमें जनता अपनी स्वेच्छा से अपने घर में रहेगी और वह दिन होगा 22 मार्च का। देश के करोड़ों लोग घर पर रहेंगे तो वायरस की चेन ब्रेक होगी। लोगों ने अपने आप को मानसिक रूप से तैयार कर लिया कि ठीक है, अपनी और परिवार की जान की हिफ़ाज़त के लिए 1 दिन घर पर रहना ही सही है।
अब जैसे ही 21 मार्च की शाम का 7:00 बजता है देशभर के अलग-अलग जिलों में पहले से ही जिला प्रशासन को यह आदेश आ चुके हैं कि आप अपने क्षेत्र विशेष में यह समाचार प्रसारित कर दीजिए आपके शहर विशेष में 3 या 4 दिन के लिए लॉकडाउन लगाया जा रहा है।
तो लोग 21 मार्च की शाम को जो अंदर हुए तो उन्होंने अपने मन में यह बात डाल ली कि 22, 23, 24, 25 तकरीबन 4 दिन का यह लॉक डाउन है, जबकि पूरे देश में केवल 1 दिन का है। लेकिन उनके राज्य में या उनके जिले में उनके क्षेत्र विशेष में तीन से चार दिन का लॉक डाउन है।
23 तारीख की शाम होती है आपको पता चलता है कि 24 मार्च से 138 करोड़ लोगों पर पूरे 21 दिन का लॉक डाउन ( lockdown ) लगाया गया है। अब यह शब्द लॉकडाउन ही लोगों ने पहली बार सुना था क्योंकि हम हिंदुस्तानियों को तो इस तरह बंद रहने की आदत थी नहीं और कभी ऐसी परिस्थितियां भी नहीं आई।

पूरा का पूरा शहर बंद, राज्य बंद, देश बंद। लेकिन सिर्फ भारत नहीं बल्कि दुनिया के अलग-अलग देश धड़ाधड़ लॉकडाउन होते जा रहे थे। पूरी दुनिया में फ्लाइट बंद हो चुकी थी, ट्रेन बंद हो चुकी थी,कारोबार काफ़ी हद तक बंद होने लगे थे, दुनिया के बड़े बाजार बंद हो चुके थे और ऐसे ही देश में भी यह कदम उठाना जरूरी था और जैसे ही लोगों ने सुना कि अब उन्हें 14 दिन घर में रहना होगा हाहाकार मच गया ।
हड़कंप ! कि इतने दिनों तक सब्जी कैसे आएगी, राशन कैसे आएगा, दूध कैसे आएगा, दवाइयों का क्या होगा लेकिन इसी के साथ-साथ मीडिया के माध्यम से और सोशल मीडिया से लगातार अपडेट मिल रहे थे कि इन सब चीजों को किस तरह व्यवस्थित रखा जाएगा या नियोजित किया जाएगा, जिससे समस्या ना हो लेकिन जाहिर सी बात है दुनिया की सबसे बड़ी महामारी (pandemic) आ चुकी थी।
यह तय हो गया था कि अनावश्यक बाहर घूमने पर पुलिस के द्वारा कड़ी कार्रवाई। जब भी कहीं एंबुलेंस आती थी, चिकित्साकर्मी आते थे, पूरा परिवार यहाँ तक कि मुहल्ला मानसिक तनाव में आ जाता था। ये कहना भी ग़लत न होगा कि उस वक़्त हर कोई एक दूसरे को संदेह की दृष्टि से देख रहा था। यह मानव के इतिहास का सबसे अधिक दु:खद समय कहा जा सकता है जिसमें विश्व के 8 अरब लोगों के सामूहिक अवचेतन ( collective subconscious ) की दशा एक सी थी। एक ही थी।
बहुत सारे दुःखद समाचार मिले। विचलित कर देने वाले दृश्य दिखे। लोगों ने तरह-तरह की परेशानियां झेलीं। जो भाग्यशाली थे उन्हें केवल घर में रह कर कुछ निराशा, कुछ डिप्रेशन झेलना पड़ा लेकिन जो भाग्यशाली नहीं थे उन्हें अलग -अलग शहरों, गाँवों में फंसे रहना पड़ा। सबसे अधिक समस्याओं का सामना किया प्रवासी मजदूरों ने। यातायात का साधन न मिलने पर लाखों मजदूरों को सैकड़ों किमी की यात्रा पैदल करनी पड़ी। बिन खाना, बिन पानी वो बस चलते रहे ताकि अपने घर पहुँच जाएं। कितने ही लोगों ने सड़कों पर, रेलवे ट्रैक पर दम तोड़ दिया।
CORONA WARRIORS
लेकिन इस अत्यंत मुश्किल वक़्त में भी corona warriors डॉक्टर्स, नर्सेस, मेडिकल स्टाफ़, पुलिस, सुरक्षा बल निरंतर काम करते रहे। अनेक क्षेत्रों से सेलेब्रिटीज़ मदद के लिए सामने आए। अनेक संगठन, एनजीओ, समूह, व्यक्ति अनजान लोगों को खाना, पानी,चप्पल बांटते रहे ताकि इस मुश्किल घड़ी में भी जीने का हौसला बना रहे। ताकि इंसानियत ज़िंदा रहे। जीती रहे।
जब भी दुनिया में युद्ध हुए हैं तो यह पता होता था कि सामने एक देश है, उन पर हमला कर रहा है और एक समय बाद युद्ध समाप्त हो जाएगा लेकिन इस वैश्विक महामारी (pandemic ) में हमारा जो शत्रु था, एक अदृश्य वायरस था यह मैं कहूं कि “अभी भी है” . मार्च 2020 सब इतने भयभीत इसलिए थे क्योंकि उन्हे यह नहीं पता था कि यह सब कब तक चलता रहेगा। 22 मार्च के उस दिन को, लॉकडाउन (lockdown ) के उस समय को,पूरा 1 साल होने वाला है।
इस 1 साल में उस बीमारी से न जाने कितने लोगों ने अपनों को खोया है,न जाने कितने कितने लोगों को अपना काम, अपना जॉब छोड़ कर दूसरे शहर में जाना पड़ा। जाने कितने लोगों का जीवन बदल गया। एक वायरस ने पूरी दुनिया को बदल कर रख दिया और अभी भी लोग मास्क लगाकर निकल रहे हैं। इसका ख़तरा अभी भी टला नहीं है।
सेनेटाइज़र (SANITIZER )अब हमारे जीवन का हिस्सा बन चुका है और मास्क (MASK ) भी। हालांकि बहुत हद तक, बहुत सारी जगह लाइफ नॉर्मल भी है क्योंकि यह भी मनुष्य की प्रकृति है कि वह लगातार चिंता में जिएगा तो डिप्रेशन में चला जाएगा और हो सकता है कि मानव सभ्यता अपने ख़त्म होने के पहले ही ख़त्म हो जाए।
इसलिए उसे जिंदा बचाए रखने के लिए बनाए रखने के लिए भी लोगों के अपने-अपने तरह से प्रयास करने ज़रूरी हैं। हम सबको यही दुआ, यही प्रार्थना करना चाहिए कि coronavirus पूरी तरह से दुनिया से ख़त्म हो जाए। वैक्सीन (vaccine) पूरी तरह कारगर हो। सारे लोगों को मुहैया हो। सारे लोग इस बीमारी से सुरक्षित हों और दुनिया फिर से वैसी ही हो पाए जैसे वह पहले थी।
IMAGE CREDIT & DESIGNING : DANISH BAIG
WRITTEN BY : IMROZ NOOR
IMROZ FARHAD NOOR is a co-founder and chief blogger of NEEROZ. He studied English Literature and Journalism. A number of articles, stories, short stories, poems have been published in reputed magazines and newspapers. He writes scripts for short movies, web series. He has been a radio announcer.He loves to read Psychology and Philosophy. He spends his spare time in drawing and playing basketball. He loves to travel. He speaks Hindi, English, and Urdu. ( learning Spanish ).