भोपाल की एक 24 साल की युवती ने लूडो ( LUDO game ) में पिता से लगातार हारने के बाद, फ़ैमिली कोर्ट में संपर्क किया है। लॉकडाउन के दौरान अपने दो भाई -बहन और पिता के साथ युवती लूडो खेल रही थी।
कुछ गेम्स में लगातार हारने के बाद वो पिता से नाराज़ हो गई। कुछ दिनों में ये नाराज़गी इतनी बढ़ गई कि मामला फ़ैमिली कोर्ट में चला गया। फ़िलहाल लड़की और परिवार की फ़ैमिली कोर्ट के द्वारा काउंसलिंग की जा रही है।
युवती ने कहा कि पिता ने कई बार उसकी गोटी ( token ) को मारा और इसकी उम्मीद उसे बिल्कुल नहीं थी। “पापा मेरी ख़ुशी के लिए गेम हार भी सकते थे”
जहां एक तरफ़ सोशल मीडिया में पिता और पुत्री के बीच अथाह प्रेम की कहानियां बहुत ज़्यादा शेयर की जाती हैं, वहां ये मामला बिल्कुल ही अलग, चौंकाने वाला और एक गंभीर संकट की तरफ़ इशारा है।
ये गंभीर संकट क्यूं है, इसके कुछ कारण ये हैं :
1 ) युवती की उम्र 24 है और वो शिक्षित है। इसका मतलब न ही इसे बचपना कहा जा सकता है, न ही इस मामले में ये कहा जा सकता है कि पढ़ी-लिखी नहीं होने की वजह से उसने ऐसा किया ( हालांकि माता पिता का सम्मान एक अशिक्षित व्यक्ति भी करता है ).
2 ) फ़ैमिली कोर्ट कॉउंसलर सरिता राजानी ने बताया कि आजकल बच्चे और युवा अपनी हार को बर्दाश्त ही नहीं कर पा रहे जिसकी वजह से ऐसे केस सामने आ रहे हैं।
3 ) इस केस में स्थिति इतनी गंभीर है कि लड़की ने अपने पिता को “पापा” कहना ही बंद कर दिया था।
अभिभावक और बच्चे। PARENTS AND CHILDREN ।
भारत महान में वो समय भी रहा है जब माता -पिता की हर बात शिरोधार्य और सर्वोपरि होती थी। इस वक़्त किसी बुज़ुर्ग से बात करें तो वो आपको बताएंगे कि अपने ज़माने में वो पिताजी के सामने ही नहीं आते थे। नज़र उठा के देखने की हिम्मत नहीं होती थी, कुछ बोलना तो दूर की बात। फ़िर आया 80 का दशक।
इस दौर में जो पिता बने उन्होने अपने बच्चों को थोड़ी रियायत दी। उन्हे खुलकर बोलने और बात करने की इजाज़त दी, लेकिन तमीज़ के दायरे में। एक शोध से पता चला है कि 80 और 90 के दशक में पिताओं ने अपने बच्चों के साथ अधिक समय बिताया जिसका बच्चों के मानसिक और भावात्मक विकास ( mental & emotional ) डेवलपमेंट पर अच्छा असर पड़ा।
और एक ये वर्तमान समय है। जहां पेरेंट्स की तरफ़ से बच्चों को काफ़ी छूट है लेकिन इसके कुछ नेगेटिव इफेक्ट्स भी सामने आ रहे हैं मसलन बच्चों में कुछ ऐसी tendency develop हो रही है, जो नही होनी चाहिए।
महान मनोवैज्ञानिक लेव वयगोत्स्की की बात अगर आप मानें तो किसी बच्चे को ‘खेलते हुए’ देखकर, ऑब्ज़र्व करके उसके भविष्य के बारे में बताया जा सकता है। खेलना, पढ़ाई के जितनी ही ज़रूरी प्रक्रिया ( important process ) है क्यूंकि खेलने में योजना बनाना, बाधाओं को पार करना, अपनी क्षमताओं को पहचानना और साथियों को सहयोग देना जैसे अहम् सामाजिक विकास के कार्य शामिल हैं।

खेल के 10 रूल जो सभी पेरेंट्स को पता होने चाहिए। 10 rules of playing every parent must know।
1 ) एक नियत समय के लिए प्रतिदिन खेलना ज़रूरी है। आउटडोर, वो भी ग्रुप में।
2 ) नियमों (rules ) को फॉलो करना है।
3 ) जीतना ज़रूरी है लेकिन चीटिंग करके नहीं।
4 ) जीतना ज़रूरी है लेकिन सब कुछ नहीं।
5 ) अगर हम खेलेंगे, तो जीत भी सकते हैं, हार भी सकते हैं।
6 ) मनोवैज्ञानिक कहते हैं बच्चों पर लेक्चर का ज़्यादा असर नहीं होता। वो खेलते वक़्त भी आपको फॉलो करते हैं।
7 ) बच्चों के साथ खेलते वक़्त, जीतने पर पॉज़िटिव ख़ुशी और हारने पर ज़रा सी निराशा का प्रदर्शन करें।
8 ) बहुत छोटे बच्चों के साथ खेलते वक़्त उन्हें जीतने दें, लेकिन हर बार नहीं। धीरे से उनका सामना हार से कराइए। उन्हें defeat को accept करना सिखाइए।
9 ) उसे सिखाइए कि practice करके और skills improve करके ही मैच जीतना सही होता है और इसके लिए मेहनत करनी होती है।
10 ) उसे बताइए कि teamwork, co-operation और दूसरे प्लेयर्स को respect देने से उसे भी playground में respect मिलेगी।
IMROZ FARHAD
IMROZ FARHAD NOOR is a co-founder and chief blogger of NEEROZ. He studied English Literature and Journalism. A number of articles, stories, short stories, poems have been published in reputed magazines and newspapers. He writes scripts for short movies, web series. He has been a radio announcer.He loves to read Psychology and Philosophy. He spends his spare time in drawing and playing basketball. He loves to travel. He speaks Hindi, English, and Urdu. ( learning Spanish ).
Astonishing.. astonishing.. bhai jaan
shukriya ! please keep reading.